Monday, June 6, 2016

जशन



जशन 

सड़क बन ने का काम चल रहा  हो जहां , वहां  बड़ी सी पाइपे लगी होती है वोह याद है? जहाँ  बच्चे  लूका छुपी खेलते है, तो कभी उसमे  मजदुर रात बशर किया करते है. उस पाइप की तरह सुरंग सी लम्बी शेहनाई. उसकी एक छोर पर महाशय तान्येक. तान्येक कितने ही बेरिआत्रिक तबिबो की उम्मीद था. अगर आज तबिबो के  घर के ओवन, एलपीजी, चल रहे है तो उसमे तान्येक का योगंदान महत्वपूर्ण था. हलाकि तान्येक इन सब बातो का श्रेय हमेशा से मोमो वाले चाचा को दिया करता था. तान्येक का कहना था आज अगर मोमो वाले चाचा उसकी ज़िन्दगी में न आये होते तो वोह आज भी किसी प्रोटीन पाउडर के इश्तिहार का हिस्सा और किस्सा होता शायद. खैर वोह अपनी भारी भर्ख्म काया के लिए चाचा का शुक्रगुजार था. ऐसा खुश दिल था तान्येक.

शेहनाई को पुरे जोश से बजा रहा था तान्येक. लोग कितना भी ग्लोबल वार्मिंग, हवा का प्रदुषण वगैरा वगैरा बाते करते रहे . पर तान्येक तो इन सब से बेफिक्र होकर अपनी सरवाधिक क्षमता से हवा को अपने फेफड़ो में भर रहा था. और उसे जिस गति और लय से बहार फ़ेंक रहा था, एक मधुर सा संगीत गूंज उठ ता था. फेफड़ो की तस्वीर खिंची जाए उस समय तो कुछ सिगरेट की डिब्बी पे अंकित चित्र जैसे ही दशा होगी, पर जनाब आज ये अशुध हवा भी तान्येक को जिंदगी दे रही थी. इस तरफ तान्येक की शेहनाई और इस तरफ नगाड़ा. कुछ लाल और पीले रंग के वस्त्र से आच्छादित साधू और जुलुस. ये सब लोग नाचते गाते हुए जा रहे है. साथ में एक बक्शा भी है जिसे कुछ लोग उठाये हुए है. अपनी ही भाषा में गीत गाते हुए, मुस्कुराके नाचते हुए जा रहे है पहाड़ पर. वहा मोनास्ट्री के पीछे जंगल में सब इकठा हुए.

ये पुरे जुलुश को घुमंतू देख रहा है. जीस आंटी के घर में वोह रुका है उन्हें वोह पूछता है की हो क्या रहा है. तभी ताशी आते है जो आंटी के पति है. वोह आते ही संवाद शुरू करते है " तुम बहोत लकी हो" घुमंतू पूछता है क्यों ? वोह बोलते है "तुम्हे अलग अलग सभ्यता , और रिवाज देखने का शौक है ना . तुम्हारा लक अच्छा है . कल रात को ही यहाँ एक आदमी ने सुसाईड कर लिया . तुम को उसका आखरी जर्नी देखनो को मिलेगा . बहोत लकी हो तुम"   घुमंतू तय नहीं कर पा रहा था की इस बात को सुन के वोह खुश हो या किसी की मरने का गम मनाये. इस से पहले कुछ सोचा समजा जाये ताशी फिर से आंटी को बताना शुरू किया . "पता है उसका बीवी उसको छोड़ के चला गया. इसी लिए वोह उदास रहता था . फिर सब ठीक हो गया था " आंटी ने पूछा "उसकी बीवी वापस आ गयी थी ?" ताशी बोला "अरे नहीं. वोह उसके भाई के साथ भाग गयी फिर . फिर वोह ठीक हो गया था . उसके बाद में उसके भाई से उसने शादी कर ली" आंटी बोली "फिर क्या हुआ" तशी बोला "फिर क्या? फिर ये सब देख के वोह लकड़ी काटने जा रहा था और अचानक सुसाईड कर लिया. हमको लगता है वोह अन्दर से इस बात से खुश नहीं था " घुमंतू सोच में था अभी भी की कैसे ताशी अपने आप से ही सारी कड़ीयो को जोड़कर किसी बड़े न्यूज़ चैनल के  एक अव्वल दर्ज्जे के पत्रकार की भूमिका निभा रहा है. उसी बिच ताशी चिल्लाया "अरे भैया चलो जल्दी, आप को भी देखना है ना , चलो जल्दी से " घुमन्तु निकल पड़ा ताशी के साथ.

पहाड़ी चढ़कर मोनास्ट्री के पीछे जाना था . बिच में स्कूल आ रहा था . अब सुबह का प्रेयर का वक़्त था . प्रेयर के बाद "जन गन मन " शुरू हुआ. यहाँ पुरे हर्षौल्लास के साथ जुलुस जा रहा है . अचानक किसी महापुरुष ने सब को इशारा किया और सभी सच्चे राष्ट्रभक्त की तरह स्तब्ध होकर , पूरी तरह डेमोक्रेसी का पालन करते हुए खड़े हो गए. घुमंतू मन में सोच रहा था क्या इस बक्शे के अन्दर जो है क्या इसे भी सावधान में खड़ा करेंगे. फिर खुद ही सोचा अरे ये तो बिचारा खुद ही विश्राम में है इसे सावधान नहीं करेंगे तो भी देशद्रोही नहीं बनेगा. जैसे ही जन गन मन समाप्त हुआ, तान्येक ने फिर से राग जशन छेड़ दिया. जुलुश चल पड़ा. मोनास्ट्री के पीछे सब इकठा होकर लकड़ी लाने में व्यस्त हो गए. फिर लाल पीले वस्त्र वाले साधू कुछ मंतर बोलने लगे और कोल्ड्रिंक्स की बोतल के सामने कुछ विधि करने लगे . वहा मरने वाली की जो बीवी थी , या फिर जो अब उसके भाई की बीवी थी वोह फुट फुट कर रो रही थी . ताशी उसे देख कर बोल रहा था "कितना दुखी है यह , बहोत प्यार करती थी इस से. वोह तो उसके भाई ने इसे भगा दिया. नहीं तो इन दोनों की जोड़ी बहोत अच्छी थी " ताशी के बारे में पत्रकार की धारणा अब दृढ ही होती जा रही थी .

पीछे एक सज्जन बेठे हुए थे . बीडी के कश लगा रहे थे . चेहरे पे जुर्रिया , तेज़ आँखे , शांत मुख मुद्रा , उकडू बेठे हुए, काले कोट में न्याय के प्रतिक रूप मानो . घुमंतू एक आकर्षण से उनके पास चला गया . कुछ देर तक कोई बात नहीं हुई. दोनों बक्शे को जलते देखते रहे . घुमंतू फिर बोला "अजीब है ना , मरने के बाद भी लोग त्यौहार की तरह मनाते है ". बुज़ुर्ग गंगोत्री में से निकली हुए  गंगा की धारा सी कल कल आवाज़ में बोले "ज़िन्दगी में सिर्फ तीन ही त्यौहार है " घुमंतू बस उनके सामने देखता रहा . दूसरा कश लेते हुए वोह बोले "जब हम सांस लेते है, जब हम सांस छोड़ते है और सांस लेने और छोड़ने के बिच का समय. ये तीन जशन मना पाए तो ज़िन्दगी गुलज़ार है  नहीं तो फिर बीमार है " कुछ देर तलक यूँही बीडी के कश चलते रहे . घुमंतू सोच में पड़ गया . शब्द कम थे पर बात इतनी गहरी थी की जैसे सारे अध्यात्मिक दर्शन का फलसफा मिल गया हो.

घुमंतू सीढ़ी उतर रहा है , वही तान्येक अपनी शेहनाई बजा रहा है . तान्येक के  चेहरे का दबाव साफ़ झलक रहा था. और घुमंतू का जशन शुरू हो चूका था .