Sunday, April 10, 2016

चड्डी पहन के फूल (कमल) खिला है

(इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है , इसका किसी भी जीवित व्यक्ति से या घटना से कोई संबंध नहीं है)


ये कहानि है एक अव्वल दरजे के  घुमक्कड़ की.

उसका जन्म भारत के एक गाँव में हुआ था. बचपन से ही ट्रेन को ताकता रहता था और सोचता था कंहा जाती होगी, ये जो लोग आ रहे है कंहा से आते होंगे. पिताजी की चाय की टपरी थी जिस से आसानी से प्रवेश मिल जाता था स्टेशन पे.

जब वोह गाँव में खेला करता था तो भी बहार जाने की ख्वाहिस लोगो को बताया करता था . एक दिन उसकी नजर एक टोली पर पड़ी. सब चड्डी पहने हुए थे और मस्ती से खेल रहे थे . उस बाल का भी मन हुआ और वोह भी खेल ने लग गया. वहा खेल के बाद बड़े मज़ेदार किस्से कहानिया सुनाते थे. बालक और भी प्रसन्न हुआ. एक दिन उसे पता चला की इस टोली में शामिल होने से खूब घुमने को मिलेगा. उसने फ़ौरन मन बना लिया टोली में शामिल होने का. बस चड्डी पहनी और निकल पड़ा. धीरे धीरे उसने देखा अगर उसे आगे बढ़ना है तो किस्से कहानी लोगो को सुनाने पड़ेंगे तब जाकर उसे घुमने का अवसर मिलेगा. बस उसको तो वही चाहिए था. धीरे धीरे कहानीकार भी बन गया. बड़ी मनभावक कहानी सुनाता था. उसका काम चल पड़ा. टोली में रोज़ वर्जिश करना, नयी नयी जगह जाना, हसी मजाक , ठहाके और कहानिया . उसे तो मानो स्वर्ग मिल गया.

पर घर वालो को चिंता हो रही थी . अब लड़का बड़ा हो गया था, शादी के लायक. तो सब ने सोचा की इसकी शादी करा देते है तो घर पे वापस आ जायेगा और यंही रहेगा . उन्हें क्या पता उस घुमक्कड़ के खुराफाती दिमाग में क्या चल रहा है . फिर भी शादी हुई. घुमक्कड़ का मन नही  लग रहा था . वोह चला गया किसी को घर पे बिना बताये. पहाड़ उसे बहोत अच्छे लगते थे . कुछ साल वंही गुजरे . फिर वंही कुछ काम मिल गया कहानी और कथा कहनेका . वोह भी किया. आखिर में टोली का जो मुख्या था उस के पास पहोंच गया . वहां से पुरे देश घुमने की योजना बनायीं और निकल पड़ा घुमने .

पर अब देश से बात बनी नहीं. उसे तो दुनिया भर घूमना था. उसको पता चला की टोली में तो सिर्फ देश ही घूम सकते है . पर इस टोली के ही कुछ दोस्त लोग थे जो दूसरी टोली में काम करते थे. दूसरी टोली का मुख्य काम था सब को कमल के हार पहनाना और अपनी टोली में शामिल कर लेना . बस उसके साथ साथ किस्से कहानी सुनाना, देश विदेश घूमना . बस यही तो चाहिए था घुमक्कड़ को. वोह फट से इस टोली में शामिल हो गया. और उसने पाया की विदेश जाने में खूब तैयारी करनी पड़ती है और मेहनत भी. बचपन से मेहनती तो था ही . लग गया परिश्रम करने . उसे लगा की अब घर जाकर ही काम करना चाहिए. वह उसे अच्छा अनुभव था कहानी सुनाके लोगो को मंत्रमुग्ध करने का . अपने राज्य में जाकर वह मुखिया बन गया . अब देखा की यहाँ कुछ साल बितान है तो क्या किया जाये . उसे गाँव का बचपन याद आया. वह हमेशा एक तरकीब किया करता था . जब भी उसे खेल में सब का मुखिया बन ना होता था तो वोह दो दल के लोगो में कुश्ती करवाया करता था. और जो सब से बड़ी संख्या में दल होता था उसे बहोत मदद भी करता था जीतने में . बस फिर क्या . बड़ी संख्या उसे मुख्या बनाये रखती . यही तरकीब उसने राज्य में भी अपनाई और अरसे तक मुख्या बना रहा.

उस समय काल में उसने विदेश जाने की तैयारी भी की. पर कुछ पर्ची  जो जरुरी थी वोह उसे नहीं मिली. बात  ये थी की कुश्ती की वजह से उसकी बदनामी हो गयी थी. सब को डर था ये हमारे वहा भी दंगल करवा देगा . अब अपनी छवि को सुधारना था. उसने फिर तरकीब निकाली . जब खेल का मुख्या हुआ करता था बचपन में तो सबको उसके दोस्त के बारे में बोला करता था . बहोत ही अज़ीज़ दोस्त था उसका. एकदम साफ़ सुथरा . अच्छी भाषा बोलने वाला . लोगो के लिए सड़क बनाता था , पानी पहोंचाता था , मकान बनवाता था . लोगो को बड़ा प्रिय था विकास. पर एक बात उनको नही पता थी. ये विकास बहोत ही चालाक था . वोह बहला फुसला कर लोगो से पैसे एंथ लेता था और फिर उसी में से उनके काम करता था. और एक भारी बचा हुआ हिस्सा घुमक्कड़ को देता था. घुमक्कड़ एक भी पैसा नहीं लेता था उसमे से , वोह सीधा अपनी टोली में जमा करवा देता था. दोनों टोली में . क्योंकि उसको तो विदेश जाना था .


घुमक्कड़ ने अपने वहाँ देखा की कुछ विकास के दोस्तों की भी एक टोली थी. वोह लोग व्यापर करते थे . उन्होंने घुमक्कड़ से दरख्वास्त रखी की आप भी विकास के दोस्त है हम भी. चलो कुछ साथ मिलके काम किया जाय. बस फिर वोह शुरू हो गया. विकास के नाम पे अब व्यापारियों को खूब मदद करने लगा और वादा भी लिया की समय आने पर उसे वापिस वोह लोग मदद करे. विकास के तो और भी दोस्त थे विदेश में .अब उसने ये भी सोचा विदेश में उसकी जान पहचान तो होनी चाहिए . बस सारे विकास के दोस्तों को बुलाता रहा अपने राज्य में . उनसे खूब दोस्ती बढाई. अब बारी थी देश का मुख्या बन ने की . उसने अपनी ही टोली के लोगो में से कुस्ती कर प्रबल दावेदार बन गया . अब सामने वाले दल में कोई जोर नहीं बचा था . सब विकास से प्रभावित थे ही . उसने सब किस्से कहानी से लोगो में विकास को ही अंतिम सुख बताया. लोग भाव विभोर होके विकास को देख ने के लिए तरस गए. जब की घुमक्कड़ ये बताता रहा की विकास चारो तरफ दिखेगा . बस  देश भर ने उसे विकास  के मोह में आकर मुख्या बनाया . उसमे विकास के व्यापारी मित्रो ने खूब मदद भी की,

आज वोह देश का मुख्या आखिर बन ही गया . अब तो उसे विदेश जाने की पक्की पर्ची भी मिल गयी . क्योकि विकास के दोस्त सारे देशो के मुख्या भी तो थे . अब वोह दुनिया भर की शैर करता है . अपनी कहानी, किस्से अभी भी लोगो को सुनाता है . विकास को तो अब भी किसी ने देखा नहीं है. कोई कहता है विकास है ही नहीं  दुनिया में . पर घुमक्कड़ आज भी अपनी मन की बातो से लोगो को मना लेता है की विकास है. इसी के साथ उसके जीवन में अथाग परिश्रम के बाद आज वोह अपनी सपनो की जिंदगी जी रहा है. विदेशो में घुमना , तस्वीरे खींचना , कथाकार बन जाना , व्यंजनों का स्वाद लेना, नयी नयी वेश भूषा , नए विकास के दोस्तों से परिचय . और तरकीब वही है दो दल को कुश्ती करा रहा है. जो ज्यादा संख्या में है उसको चुपके से मदद कर देता है ताकि वोह मुख्या बना रहे . और इस कोशिश में उसकी मदद चड्डी वाली टोली , कमल का हार पहनाने वाली टोली और विकास , ये सब उसके साथी है.

चड्डी पहन के फूल (कमल) खिला है , फूल  खिला है..... देश विदेश में बात चली है , चड्डी पहन के फूल खिला है....


Pinjara

Raat hone ke saath sama bhi kajal ki tarah gehra ho raha tha. Baarish ki boonde damar ki sadko pe girte hi malhar raag gunguna rahi thi. Chand gaadiya, do pahiya, cycle aur bagal me kuch chattriya chal rahi thi. Kudrat ki banaye vishram sthal ki aad me kuch log vicharo ke shailab me baarish ki tivrata kam hone ka intezar kar rahe the.
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Tolerance

Kodvu ke junglo me basa hua ek kasba. Savere hote hi ahladak nazara. Paschimi ghat ki pahadiya jaise hari chadar odhe bethi hai aur shardi me ubasi lete hue sanso se niklta hua dhnua. Sahelani dhund ko mehsus karte to aisa lagta jaise pahadi tulsi ke patte chabakar taza hava de rahi ho. Bazar me halki si chehal pahal ke bich tejana aur masale ki bikri karti hui dukane.
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पानी

हीमालय- प्राक्रुतीक एवम संस्क्रुतीक सम्न्वय। अनुभुति मानो आह्लादक। जैसा विशाल पहाड, वैसे ही स्वभाव के प्राणी और सामाजीक प्राणी।
एक घुम्ंतु यात्रा करते हुए यहां आ पहोंचा। कुछ प्रदेश घुम्ने के बाद यहां देखा तो नझारा बेहतरीन था। दुर बर्फ़ में लदे हुए पहाड, जैसे कि चोक्लेट पेस्ट्री पे सफ़ेद क्रीम डाल सजाया हो। निचे देवदार के पेड कि सेना र्र्र्क्षा मे तैनात। सांप सीढी जैसी काली और खाली सडके। शाम का वक्त था और बारिश् अपना पुरा जोर लगाकर बरसने लगी।
घुम्ंतु को दुर से कुछ रोशनी दिखाइ पडी और वोह बाझार में पहोंचा। कुछ किरदार अपनी भुमीका निभा रहे थे इस दुनीया में। । ज्यादातर लकडे की बनी दुकाने दिखाइ पड रही थी। ताझा सब्जी और फ़ल महिला के हाथ् से चुनकर टोक्र्री मे जा रहे थे और अपने चुनाव से आने वाली जीत की खुशी महीला के चेहरे पे छलक रही थी। पास ही से कुछ तलने की खुश्बु आ रही थी। जीग्नाशा वश घुम्ंतु ने जाकर देखा तो गर्मा गर्म पकोडे तैयार हो रहे थे। एफ़.डी.आइ. में निवेष्को को जैसे छुट दी जाति है वैसे ही घुम्ंतु के मुंह से पानी छुटा और वोह सीधा गया ठेले पे। मालीक ने अन्दर आते ही बोला "आओजी आओ, क्या खाना पसंद करोगे?" घुम्ंतु ने अप्ने दोनो हाथ को मसलते हुए कहा एक प्लेट पकोडे मील जाते तो बढीया होता। मालीक ने हंसते हुए कहा "ओ जी क्यो नही, अभि मिल जायेंगे"।पकोडे खाते समय मालीक ने पूछा "ज्यादा तेझ तो नही है ना भाइसाब?"। घुम्ंतु बोला "मिर्चि ठीक है। और बताइए इस जगह के बारे में?" मालीक मूस्कुराते हुए बोला "बस पहाडी इलाका है और क्या" घुम्ंतु जब आखिर मे पैसे चुकाने गया तब मालीक बोलता है "और कोइ सेवा भाइसाब?" घुम्ंतु केहता है "बस इतना बता दिजिये कीराने की दुकान कहा है?" मालीक बोला "ओ जी इसी लाइन में तीसरी दुकान है अपने भट्ट जी की और उनसे आपको बढीया जानकारी मील जायेगी"। एक कम बस्ती वाले कस्बे मे सब एक दुस्र्रे को अछ्छी तरह पेह्चानते है।
भट्ट किराना स्टोर। मोल की चकाचौंध से कही ह्टके साधारन सा व्यापार का स्थल जहां काउंटर की भी लक्शमन रेखा नही थी। अन्दर प्रवेश करते ही थोडा सा हिस्सा बिल्कुल खाली जहां गद्दि बिछाए हुइ थी बेठ्ने के लिये। एक तरफ़ कोट, पयजामा, सर पे गोल टोपी और नजर के चश्मे लगाये सज्जन बेठे हुए थे। अन्दर एक नौजवान कुछ सामान ठीक कर रहा था। आइए बैठिए, क्या सहायता कर सक्ता हुं आपकी? येह पेह्ले शब्द थे उनके। घुम्ंतु ने बैठ्ते हुए बोला " एक शेवींग रेजर चहिये"। सज्जन बोले नौजवान से "एक शेविंग रेजर लाना जरा"। नौजवन फ़ुर्ती से रेजर लेके आया और निचे रखा। घुम्ंतु देख्ते हि बोला "जी ये नही चाहीए। मै तो अलग ब्रांन्ड इस्तेमाल करता हुं"। सज्जन बोले "ये शेवींग के लिये हि है और इस से कटेगा भी नही। हमारे पास यही है, बाकी आप की मर्झी"। घुम्ंतु ने आखिर ले लिया और बात्चीत को जारी रखा। कुतुहल मे घुम्ंतु ने पूछा "वैसे आप ये सामान शेहर से लाते होंगे ना?' सज्जन बोले "हां। महिने मे एक बार जाते है तब दुकान बन्ध रेहती है। पुरा दीन लग जाता है आने जाने मे"। घुम्ंतु उत्साह मे केह्ता है "अछ्छा ये बताइए जब आप वहां जाते हो शेहर मे, तो कैसा मेह्सुस होता है? क्या ऐसा विकास यहां पे भी होना नही चाहीये?" अपनी बात पुरी करते करते घुम्ंतु खांस ने लगा। सज्जन ने नौजवान को पानी लाने कॊ कहा। नौजवान गिलास मे पानि लेकर आया और घुम्ंतु को दिया। घुम्ंतु ने पानी के घुंट पिते हुए नौजवान को धन्यवाद कहा और अपना प्रश्न सज्जन से किया। सज्जन कि नजर के चश्मे के अन्दर दबी हुइ आंखे, आंखो को साथ देती हुइ चेहरे कीझुर्रिया , एक लम्बी सांस लेकर गीलास कि और देख के जवाब दिया "विकास? अब ये पानी भी बिकाउ हो गया है " घुम्ंतु कुछ नही बोला। एक चुप्पि सी छा गयी माहोल मे उस्के बाद.
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