Wednesday, July 20, 2016

मज़ा

धुक... धुक... धुक.. धुक.. एक लय में चलती हुई मोटरसाइकिल और साथ में चार की मात्रा में तबले की ताल जैसा पथ्थरो का साथ. बिच में पानी का झरना जैसे खंजरी की कमी पूरी करती हुए शास्त्रीय संगीत में मंत्रमुग्ध करता था. परिचालक अपनी ह्रदय के नाद को बखूबी संगीत के तालमेल में डुबो कर आनंद ले रहा था.
एक पड़ाव पे आके रुकता है तो लगा जैसे संगीत कुछ देर छुट्टी मनाने चला गया. कह कर गया जैसे थोड़ी देर में आता हु. चाय की चुस्की लेते हुए जब सामने बेठे शक्श को देखा तो अपनी मानस पटल पे बहोत सारे चित्र पलट कर देख गया. अचानक से एक आवाज़ की रणकार गूंजी "ब्रिजेश????" सामने शक्श मुस्कुराया और बोला "निमित"! दोनों गले मिले और कहने लगे "बहोत साल हो गए " ब्रिजेश कहता है "काफी तर्रक्की कर ली तुमने तो दोस्त"
सामने से जवाब आया "नहीं. अभी भी वही हु, जहा पहले था " ब्रिजेश कुछ समज न पाया हो ऐसे आँख बड़ी कर के इशारा करने लगा. फिर जवाब आया "बचपन में साइकिल किराये पे लेते थे चंद घंटो के लिए और ज़िन्दगी के मज़े लूट ते थे. आज मोटरसाइकिल किराये पे लेकर पहाड़ो में घूम रहे है वोही ज़िन्दगी के मज़े तलाश ने में. चंद घंटे दिनों में तब्दील हो गए है. पर ज़िन्दगी अब भी समज नहीं आई. कुछ भी तो नहीं बदला. वंही तो खड़े है हम. तलाश अब भी तो ज़ारी ही है "
ब्रिजेश सुनकर सोच में पड़ गया. अब भी आखरी शब्द उसके ज़ेहन में बजते रहे "तलाश अब भी जारी है"
फिर से वोह मंत्रमुग्ध करने वाला संगीत खनक ने लगा..
धुक... धुक..... धुक.... धुक.... धुक.....

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