Sunday, April 10, 2016

पानी

हीमालय- प्राक्रुतीक एवम संस्क्रुतीक सम्न्वय। अनुभुति मानो आह्लादक। जैसा विशाल पहाड, वैसे ही स्वभाव के प्राणी और सामाजीक प्राणी।
एक घुम्ंतु यात्रा करते हुए यहां आ पहोंचा। कुछ प्रदेश घुम्ने के बाद यहां देखा तो नझारा बेहतरीन था। दुर बर्फ़ में लदे हुए पहाड, जैसे कि चोक्लेट पेस्ट्री पे सफ़ेद क्रीम डाल सजाया हो। निचे देवदार के पेड कि सेना र्र्र्क्षा मे तैनात। सांप सीढी जैसी काली और खाली सडके। शाम का वक्त था और बारिश् अपना पुरा जोर लगाकर बरसने लगी।
घुम्ंतु को दुर से कुछ रोशनी दिखाइ पडी और वोह बाझार में पहोंचा। कुछ किरदार अपनी भुमीका निभा रहे थे इस दुनीया में। । ज्यादातर लकडे की बनी दुकाने दिखाइ पड रही थी। ताझा सब्जी और फ़ल महिला के हाथ् से चुनकर टोक्र्री मे जा रहे थे और अपने चुनाव से आने वाली जीत की खुशी महीला के चेहरे पे छलक रही थी। पास ही से कुछ तलने की खुश्बु आ रही थी। जीग्नाशा वश घुम्ंतु ने जाकर देखा तो गर्मा गर्म पकोडे तैयार हो रहे थे। एफ़.डी.आइ. में निवेष्को को जैसे छुट दी जाति है वैसे ही घुम्ंतु के मुंह से पानी छुटा और वोह सीधा गया ठेले पे। मालीक ने अन्दर आते ही बोला "आओजी आओ, क्या खाना पसंद करोगे?" घुम्ंतु ने अप्ने दोनो हाथ को मसलते हुए कहा एक प्लेट पकोडे मील जाते तो बढीया होता। मालीक ने हंसते हुए कहा "ओ जी क्यो नही, अभि मिल जायेंगे"।पकोडे खाते समय मालीक ने पूछा "ज्यादा तेझ तो नही है ना भाइसाब?"। घुम्ंतु बोला "मिर्चि ठीक है। और बताइए इस जगह के बारे में?" मालीक मूस्कुराते हुए बोला "बस पहाडी इलाका है और क्या" घुम्ंतु जब आखिर मे पैसे चुकाने गया तब मालीक बोलता है "और कोइ सेवा भाइसाब?" घुम्ंतु केहता है "बस इतना बता दिजिये कीराने की दुकान कहा है?" मालीक बोला "ओ जी इसी लाइन में तीसरी दुकान है अपने भट्ट जी की और उनसे आपको बढीया जानकारी मील जायेगी"। एक कम बस्ती वाले कस्बे मे सब एक दुस्र्रे को अछ्छी तरह पेह्चानते है।
भट्ट किराना स्टोर। मोल की चकाचौंध से कही ह्टके साधारन सा व्यापार का स्थल जहां काउंटर की भी लक्शमन रेखा नही थी। अन्दर प्रवेश करते ही थोडा सा हिस्सा बिल्कुल खाली जहां गद्दि बिछाए हुइ थी बेठ्ने के लिये। एक तरफ़ कोट, पयजामा, सर पे गोल टोपी और नजर के चश्मे लगाये सज्जन बेठे हुए थे। अन्दर एक नौजवान कुछ सामान ठीक कर रहा था। आइए बैठिए, क्या सहायता कर सक्ता हुं आपकी? येह पेह्ले शब्द थे उनके। घुम्ंतु ने बैठ्ते हुए बोला " एक शेवींग रेजर चहिये"। सज्जन बोले नौजवान से "एक शेविंग रेजर लाना जरा"। नौजवन फ़ुर्ती से रेजर लेके आया और निचे रखा। घुम्ंतु देख्ते हि बोला "जी ये नही चाहीए। मै तो अलग ब्रांन्ड इस्तेमाल करता हुं"। सज्जन बोले "ये शेवींग के लिये हि है और इस से कटेगा भी नही। हमारे पास यही है, बाकी आप की मर्झी"। घुम्ंतु ने आखिर ले लिया और बात्चीत को जारी रखा। कुतुहल मे घुम्ंतु ने पूछा "वैसे आप ये सामान शेहर से लाते होंगे ना?' सज्जन बोले "हां। महिने मे एक बार जाते है तब दुकान बन्ध रेहती है। पुरा दीन लग जाता है आने जाने मे"। घुम्ंतु उत्साह मे केह्ता है "अछ्छा ये बताइए जब आप वहां जाते हो शेहर मे, तो कैसा मेह्सुस होता है? क्या ऐसा विकास यहां पे भी होना नही चाहीये?" अपनी बात पुरी करते करते घुम्ंतु खांस ने लगा। सज्जन ने नौजवान को पानी लाने कॊ कहा। नौजवान गिलास मे पानि लेकर आया और घुम्ंतु को दिया। घुम्ंतु ने पानी के घुंट पिते हुए नौजवान को धन्यवाद कहा और अपना प्रश्न सज्जन से किया। सज्जन कि नजर के चश्मे के अन्दर दबी हुइ आंखे, आंखो को साथ देती हुइ चेहरे कीझुर्रिया , एक लम्बी सांस लेकर गीलास कि और देख के जवाब दिया "विकास? अब ये पानी भी बिकाउ हो गया है " घुम्ंतु कुछ नही बोला। एक चुप्पि सी छा गयी माहोल मे उस्के बाद.
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